नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-5

कदंभ तुम अश्व श्रेष्ठ है, फिर अधिरता किस बात की?? क्या सिर्फ इसलिए कि लक्षणा तुम्हारी प्रिय सखी है।अधीन होना तुम्हें कभी शोभा नहीं देता। इस संसार में तुम्हारा स्थान "गायत्री, वृहति, उष्णिक, जगती, त्रिष्टुप, अनुष्टुप और पंक्ति" इस सातो महारथी घोड़े, जो भगवान सूर्य के रथ का संचालन करते हैं, उनसे कहीं रत्ती भर भी कम अपने आप को मत आंको।

यदि स्वयं अरुणदेव से पूछा जाए जो भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ के भाई और सूर्य देव के सारथी है, तो वे तुम्हारे वही जवाब देंगे, सामान शक्तियां हैं तुम्हारी....

कहो, कैसे आना हुआ?? कहते हुए अचानक गूंजे शब्द की ओर कदंभ ने गौर किया। तो उन्हें सूर्य की तरह चमकते हुए उसके साथ आचार्य वर के दर्शन हुए, वे मुस्कुराते हुए कदंभ को देख रहे थे।

कदंभ उन्हें प्रणाम कर सिर्फ इतना ही कहा....आचार्य वर मुझे उस लोक से इस लोक तक लाने के पश्चात यदि आप खुद मुझसे मेरा यहां आने का कारण पूछेंगे.... तब भला मैं क्या जवाब दूंगा.. आप ही बताएं???

मतलब कदंभ मेरे गणना काल के अनुसार लगभग दस वर्ष पूर्ण हो गए। क्या चित्रसेन ने आज तक तुम्हें धरती पर बुलाने का मूल उद्देश्य नहीं बताया?? क्या अब तक तुमने खुद यह ज्ञात करने का प्रयास नहीं किया, या तुम दोनों ही मात्र शक्ति संचय में लगे हो। यह ज्ञान होते हुए भी कि मेरी तपस्या की सारी शक्तियों को तुम दोनों ही आसानी से उपयोग कर सकते हो।

मतलब साफ है कि अभी तक देवी का आदेश स्पष्ट नही हुआ। आखिर क्यों?? यह मैं बाद में जान दूंगा, पहले मुझे यह बताओ कि प्रकृति के नियमानुसार जो कि पूर्व निश्चित था। पंच शक्तियों के प्रतिरूपों को श्राप से मुक्त कर क्या लक्षणा ने उनसे अभय वरदान प्राप्त कर लिए.....हां या नहीं। यदि हां तो.... अगला चरण क्या होगा???क्या किसी ने कुछ बताया???

एक साथ इतने सवाल और अपनी नाकामयबी के बारे में सुन कदंभ शांतचित्त खड़ा रहा, क्योंकि वाकई यदि चित्रसेन महाराज जानते थे, तब भी शांत क्यों रहे?? जानबूझकर किया होगा।

यह तो कल्पना से भी परे है, तब आचार्य ने कदंभ को देखकर कहा, तुम्हारी यहां उपस्थिति स्पष्ट करती है, कि परिवर्तन निश्चित है। जाओ... तुम्हें सिर्फ यही आश्वासन देता हूं कि जिस मनसा से यहां तुम आए हो, वह बहुत जल्द पूरी होगी। शुभ मुहूर्त और समय का इंतजार करो।

लक्षणा से कहो की शक्तियों पर नियंत्रण पाने हेतु वह वर्तमान में चित्रसेन से ही शिक्षण ले। मैं जल्द ही उससे खुद आकर मिलूंगा, यह कहते हुए आचार्य कदंभ के पास आकर उसके सिर पर हाथ रख कहने लगे, मैंने अपनी तपस्या के बल तुम्हें एक विशेष शक्ति प्रदान की है। इसे जाकर लक्षणा को हस्तांतरित कर देना, तुम्हारे काफी सवालों के जवाब शायद उसी में हैं।

ठीक है तुम जाओ,,,,कहते हुए आचार्य पुनः तपस्या में लीन हो गए। कदंभ अपने अधूरे पूरे सवालों के जवाब लिए सोचते हुए वापस आए, तब तक लक्षणा वही अपनी खिड़की के पास बैठी चांद सितारों की गणना मैं व्यस्त थी, या यूं कहें कि वह खोई हुई थी, समझने का प्रयास कर रही कि प्रकृति को....जो लगभग असंभव सा है।

कदंभ ने आकर एक फूंकार के साथ लाए हुए शक्ति का हस्तांतरण लक्षणा की और किया। जिसके स्पर्श मात्र से ही लक्षणा में आलोकिक चमक दिखने लगी। ऐसा लगा जैसे वह वर्षों की नींद से जागी हो।

वह कदंभ से कहने लगी.. तुम्हारी मित्रता किसी अविरल साधना से कम नहीं। मैं सदा ऋणी रहूंगी तुम्हारी....बस संदेश मुझे मिल गया, थोड़ा इंतजार यदि आवश्यक है तो वह भी कर लेंगे।

आचर्य चित्रसेन जी से कहना मैं जल्द आऊंगी, और गुरु आज्ञा का पालन करूंगी। जीवन का मुख्य उद्देश्य मैं जान गई हूं। जल्द ही अपने कार्य को पूर्ण करेंगे। गुरु आदेश प्राप्त हो गया, इसके लिए धन्यवाद कहते हुए वह ठीक उसी तरह जैसे आचार्य वर ने किया, वह भी ध्यानस्थ होकर बैठ गई। उसके चेहरे की चमक उस समय चंद्रमा से कम नहीं थी।

कदंभ जान चुका था कि संकल्प पूर्ति का समय नजदीक आ गया है। अब उसे भी तैयारियां करनी होगी। वह पलक झपकते ही वहां से आचार्य चित्रसेन जी के पास जा पहुंचा और सारा वृत्तांत कह सुनाया।

चित्रसेन जी गुरु के नाराजगी भरे आदेश को समझ गए और कदंभ के कान में कुछ कहने लगे, तभी कदंभ बड़ी तेज उछाल के साथ आसमान की ओर गया और पुनः तेजी से आकर धरती पर आकर एक जोरदार छलांग लगाई।

देखते ही देखते उसकी पूंछ में चिपके हुए दो सर्प नीचे गिर पड़े और इससे पहले कि वह भाग पाते, चित्रसेन और कदंभ ने उन्हें सावधान कर चेतावनी दी, और मूल उद्देश्य ऐसा करने का स्पष्ट जानना चाहा।

कोई उपाय न देख वे दोनों बेचारे अपनी व्यथा सुनाने लगे। उनके कहे अनुसार वे दोनों किसी विशेष शक्ति के अधीन है, लेकिन इसका वर्णन कर पाना उसके वश में नहीं, वरना वे अपने दिए वचन के अनुसार खंडित हो जाएंगे, इसलिए उन्हें क्षमा करें या फिर मुक्ति दे।

चित्रसेन उनकी यह विवशता समझ उनकी ओर देखते हुए सिर्फ इतना ही कह पाए..... लक्षणा का जन्म पूर्व निर्धारित है। नागपत्री की सुरक्षा अवश्य ही सुनिश्चित की जाए, लेकिन इसका आशय यह नहीं कि उसके सच्चे हकदार की जासूसी करें। तुम दोनों ही उत्तम सैनिक हो, और तुम्हारा कोई दोष भी नहीं, इसलिए मुक्ति कैसी??

तुमने तो सिर्फ अपना कर्तव्य का पालन किया....जाओ जाकर सिर्फ यही संदेश दे दो कि प्रकृति के नियम अनुसार नागपत्री को पढ़ और समझ पाने का सौभाग्य रखने वाली नागकन्या का अवतरण हो चुका है, वह जल्दी समस्त शर्तों को पूर्ण कर उस दरवाजे तक भी पहुंचेगी। तब चाहे जो परीक्षा ले लेना....

लेकिन इसके पूर्व किसी भी प्रकार की जासूसी या रुकावट क्षमा के काबिल नहीं, हम सब इस परीक्षा के प्रस्ताव के लिए प्रस्तुत है। जाओ जाकर हमारा यह संदेश अपनी सभा में कहना, हम जल्द ही उनके द्वारा संरक्षित उस दंड को भी प्राप्त करने आ रहे हैं, जो अब तक धरो और सरो हमारे लिए ही संरक्षित कर रखी गई है।

जाओ वीर सैनिकों.... वरना हो सकता हैं कि मेरे माफ करने के बाद भी कदंभ तुम्हें तुम्हारे राज्य की सीमा तक खदेड़ते हुए ले जाए, क्योंकि यह एक सच्चा मित्र और साथी है, जिसने ना जाने कितने ही युगो से नर और नारायण की तरह एक होते हुए भी अलग-अलग रूप में रहना स्वीकार किया सिर्फ नाग माता की इच्छा से, क्योंकि सबसे बड़ी शर्त यही रखी गई थी, कि ऐसी नागकन्या जिसका जन्म तो मनुष्य रूप में हुआ हो, लेकिन उसने नागशक्ति का वरन अपने अस्तित्व में कर लिया हो। मतलब साफ़ था अपने आप को इतना काबिल बनाने की वह इच्छाधारी नाग की शक्ति मनुष्य जीवन में ही प्राप्त कर ले।

क्रमशः....

   16
2 Comments

Mohammed urooj khan

23-Oct-2023 12:27 PM

👍👍👍

Reply

Gunjan Kamal

21-Oct-2023 03:39 PM

👏👌

Reply